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नई दिल्ली: पहले हरियाणा और अब महाराष्ट्र के नतीजों के बाद दिल्ली में भी बीजेपी नेताओं का जोश हाई है। दिल्ली विधानसभा चुनाव में कम ही वक्त बाकी है और पार्टी की ओर से अलग-अलग रणनीति तैयार की जा रही है। एक ओर जहां दिल्ली में महाराष्ट्र वाले फॉर्मूले को लागू करने की चर्चा है जिसमें लाडली बहना योजना जैसी स्कीम शामिल है। वहीं दूसरी ओर बीजेपी मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किए बिना ही मैदान में उतर सकती है। पार्टी सूत्रों के अनुसार, बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में चुनाव प्रचार करने की सफल रणनीति को जारी रखना चाहता है। इस रणनीति से पिछले एक साल में हुए कई राज्यों के चुनावों में पार्टी को फायदा हुआ है।
BJP की इस रणनीति के पीछे ये है वजह
बीजेपी ने एक साल के भीतर संपन्न हुए महाराष्ट्र, झारखंड, हरियाणा, तेलंगाना, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों में भी मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित नहीं किया था। इनमें से 5 राज्यों में बीजेपी को बड़ी जीत मिली जिसमें महाराष्ट्र भी शामिल है। पार्टी के सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित न करने के पीछे कई कारण हैं। यह रणनीति अन्य राज्यों में लागू की गई सफल रणनीति के जैसे ही है। इससे आंतरिक मतभेदों को रोकने में मदद मिलती है और चुनावी फोकस व्यक्ति-केंद्रित अभियानों के बजाय नीतिगत मुद्दों पर रहता है। बीजेपी नेताओं का मानना है कि आम आदमी पार्टी पिछले 10 सालों से सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रही है। इसलिए हम इसे चेहरों की लड़ाई नहीं, बल्कि सड़कों की हालत, सीएम आवास के नवीनीकरण पर खर्च जैसे मुद्दों की लड़ाई बनाना चाहते हैं।
कभी चेहरा तो कभी नहीं, तीन चुनावों का ऐसा हाल
बीजेपी ने 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में पूर्व आईपीएस अधिकारी किरण बेदी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया था। लेकिन पार्टी को सिर्फ तीन सीटों पर ही जीत मिली थी। 2013 में, बीजेपी ने हर्षवर्धन को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया था। पार्टी 32 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, लेकिन बहुमत से दूर रह गई थी। 28 सीटें जीतने वाली आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के आठ विधायकों के समर्थन से सरकार बनाई थी। हालांकि, यह सरकार सिर्फ 49 दिन ही चल पाई थी। पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी बिना मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किए ही चुनाव मैदान में उतरी थी, लेकिन उसे केवल आठ सीटें ही मिली थीं।
फैसला केंद्रीय नेतृत्व को ही करना है
बीजेपी के कुछ नेताओं का मानना है कि हमने पहले भी मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया है और बिना चेहरे के भी चुनाव लड़ा है। लेकिन इस बार पार्टी चाहती है कि चर्चा मुद्दों पर हो, व्यक्ति पर नहीं। दिल्ली बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि चुनावों को लेकर कई दौर की बैठकें और बातचीत हुई हैं, लेकिन अभी तक ऐसा कोई संकेत नहीं मिला है कि प्रदेश इकाई को किसी भी ऐसे चेहरे को प्रमोट करना चाहिए जिसे पार्टी भविष्य के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में देखती है। हालांकि 2025 के दिल्ली चुनाव के लिए मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार का अंतिम फैसला केंद्रीय नेतृत्व को ही करना है।
चेहरा घोषित नहीं किया तो फिर वही सवाल
दिल्ली बीजेपी के इस फैसले के पीछे कई रणनीतिक कारण हो सकते हैं। यह रणनीति कई राज्यों में सफल हो चुकी है। आम आदमी पार्टी के दिल्ली में वर्तमान कार्यकाल में पार्टी के कई नेताओं पर गंभीर आरोप लगे। कई नेताओं को जेल जाना पड़ा और कुछ नेता साथ भी छोड़ चुके हैं। अरविंद केजरीवाल के सामने इस बार पिछले चुनाव के मुकाबले चुनौती बड़ी है। वहीं बीजेपी प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता का फायदा उठाना चाहती है। देखना होगा कि यह रणनीति बीजेपी के लिए कितनी कारगर साबित होती है। यह बात भी तय है कि चुनाव के वक्त जब कोई चेहरा नहीं होगा तो AAP की ओर से पूछा जाएगा कि केजरीवाल के सामने कौन? इन तमाम सवालों के बीच बीजेपी नेताओं का मानना है कि स्थिति इस बार दिल्ली में बदली हुई है।
BJP की इस रणनीति के पीछे ये है वजह
बीजेपी ने एक साल के भीतर संपन्न हुए महाराष्ट्र, झारखंड, हरियाणा, तेलंगाना, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों में भी मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित नहीं किया था। इनमें से 5 राज्यों में बीजेपी को बड़ी जीत मिली जिसमें महाराष्ट्र भी शामिल है। पार्टी के सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित न करने के पीछे कई कारण हैं। यह रणनीति अन्य राज्यों में लागू की गई सफल रणनीति के जैसे ही है। इससे आंतरिक मतभेदों को रोकने में मदद मिलती है और चुनावी फोकस व्यक्ति-केंद्रित अभियानों के बजाय नीतिगत मुद्दों पर रहता है। बीजेपी नेताओं का मानना है कि आम आदमी पार्टी पिछले 10 सालों से सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रही है। इसलिए हम इसे चेहरों की लड़ाई नहीं, बल्कि सड़कों की हालत, सीएम आवास के नवीनीकरण पर खर्च जैसे मुद्दों की लड़ाई बनाना चाहते हैं।
कभी चेहरा तो कभी नहीं, तीन चुनावों का ऐसा हाल
बीजेपी ने 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में पूर्व आईपीएस अधिकारी किरण बेदी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया था। लेकिन पार्टी को सिर्फ तीन सीटों पर ही जीत मिली थी। 2013 में, बीजेपी ने हर्षवर्धन को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया था। पार्टी 32 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, लेकिन बहुमत से दूर रह गई थी। 28 सीटें जीतने वाली आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के आठ विधायकों के समर्थन से सरकार बनाई थी। हालांकि, यह सरकार सिर्फ 49 दिन ही चल पाई थी। पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी बिना मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किए ही चुनाव मैदान में उतरी थी, लेकिन उसे केवल आठ सीटें ही मिली थीं।
फैसला केंद्रीय नेतृत्व को ही करना है
बीजेपी के कुछ नेताओं का मानना है कि हमने पहले भी मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया है और बिना चेहरे के भी चुनाव लड़ा है। लेकिन इस बार पार्टी चाहती है कि चर्चा मुद्दों पर हो, व्यक्ति पर नहीं। दिल्ली बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि चुनावों को लेकर कई दौर की बैठकें और बातचीत हुई हैं, लेकिन अभी तक ऐसा कोई संकेत नहीं मिला है कि प्रदेश इकाई को किसी भी ऐसे चेहरे को प्रमोट करना चाहिए जिसे पार्टी भविष्य के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में देखती है। हालांकि 2025 के दिल्ली चुनाव के लिए मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार का अंतिम फैसला केंद्रीय नेतृत्व को ही करना है।
चेहरा घोषित नहीं किया तो फिर वही सवाल
दिल्ली बीजेपी के इस फैसले के पीछे कई रणनीतिक कारण हो सकते हैं। यह रणनीति कई राज्यों में सफल हो चुकी है। आम आदमी पार्टी के दिल्ली में वर्तमान कार्यकाल में पार्टी के कई नेताओं पर गंभीर आरोप लगे। कई नेताओं को जेल जाना पड़ा और कुछ नेता साथ भी छोड़ चुके हैं। अरविंद केजरीवाल के सामने इस बार पिछले चुनाव के मुकाबले चुनौती बड़ी है। वहीं बीजेपी प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता का फायदा उठाना चाहती है। देखना होगा कि यह रणनीति बीजेपी के लिए कितनी कारगर साबित होती है। यह बात भी तय है कि चुनाव के वक्त जब कोई चेहरा नहीं होगा तो AAP की ओर से पूछा जाएगा कि केजरीवाल के सामने कौन? इन तमाम सवालों के बीच बीजेपी नेताओं का मानना है कि स्थिति इस बार दिल्ली में बदली हुई है।
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